29 जुलाई 2011

छिटपुट

हैदराबाद, 5 फरवरी 1957

आज कमला का एक पत्र और आया है. पैसे मिल गये थे. हाल तकरीबन अच्छा ही है. लिखा है कि दिल्ली जा रही हूँ. अगर टैक्स देना पड़ा तो माता जी को अपने पैसों में से ही देना पड़ेगा. डेढ़ सौ कर्ज़ भी लिया माता जी ने और सब इधर उधर में ही निकल गया. मई में गुड्डे का मुंडन करना होगा. पता नहीं मानवी के पैसे उसके लिए मिलेंगे या नहीं.

पत्र में कमला ने मेरी उस डायरी का भी ज़िक्र किया है जो मैंने लखनऊ में लिखा था. तब से अब बहुत कुछ बदल गया है. जीवन में वह तनाव नहीं है, न अच्छा, न बुरा. जो जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं, उसकी क़दर शायद मैंने अधिक सीख ली है और उससे अधिक की मांग करना कमला ने बन्द कर दिया है. हम दोनो में कुछ दिमागी प्रौढ़ता भी आ गयी है. सम्बन्धों की बात क्या करूँ? चमक कम है, स्थायित्व ज़्यादा है. चमक भी शायद इसलिए कम है कि कि फुर्सत ही नहीं है. मैं अलग फँसा हूँ और मुझसे भी ज़्यादा वह फँसी हुई है, घर के झँझटों में. चमक कहाँ से आये. लेकिन इस एक साल के अन्दर अगर उसका स्वास्थ्य ठीक हो जाये और पैसों का दिन रात का रोना ख़तन हो तो चमक भी फ़िर आ जायेगी, यह निश्चित ही है.

और कोई विषेश बात नहीं है. इंदुमति की पुस्तिका पहले तैयार करनी है. उसके बाद रिपोर्ट. साप्ताहिकी का काम सो संभवतः कल खंतम हो जायेगा.

बड़ी बहन जी और कशपी को ख़त लिखे थे, आज भेज भी दिये हैं.

हैदराबाद, 7 फरवरी 1957

कमला का एक पत्र कल दिल्ली से आया. ठीक ही है सब जवाब भी कल रात को भेज दिया था. बद्री आज दफ्तर आये थे, लेकिन मैंने कोई बात नहीं की, तबियत भी नहीं है कि करूँ. फ़िर किसी समय भेंट हुई तो जितेन्द्र सिंह, लक्ष्मीकांत और लक्ष्मीनारायण लाल वगैरह की शिकायत पहुँचा दूँगा. देखूँ क्या कहते हैं. भारती को चिट्ठी लिखनी चाहिये. याद रहा तो लिखूँगा.

रमा को आज लोकनाथ ने टेलीफ़ोन किया था. उसके पहले एक टेलीफोन रीवा से आया था. विधानसभा में निशान "पंजा" दे दिया है और रमा को "पेड़". लोकनाथ आज दिल्ली जा रहा है. यह जो सिलसिला चुनाव कमिश्नर ने निकाला है यह तो पार्टी पद्धिति के ही विरुद्ध है. देखें क्या होता है.

इन्दिरा गाँधी ने प्र.सो.पा. पर जो आरोप लगाया था, वह वापस ले लिया है, नेहरू के कहने पर. कुछ टीका करना व्यर्थ है. सिहोरा की रिपोर्ट लिखनी आज शुरु की है.

भविष्य का सिलसिला कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या होगा. गोस्वामी ने आज कुछ काम देने को कहा है, पचीस तीस रुपये का. चलो यही सही.

इन्दुमति को भी एक पत्र आज भेजा है. पुस्तिका के बारे में. उसमें भी डाक्टर साहब से डाँट खानी पड़ेगी शायद.

और क्या लिखूँ, दिमाग खाली सा ही है. वह कहानी जो अंग्रेजी में लिखनी शुरु की है, पूरी करनी है. कल से कुछ चिट्ठी पत्री भी शुरु करनी है.

हैदराबाद, 8 फरवरी 1957

आज सुबह कृष्ण कुमार का पत्र आया है. गोपी ने उसे पैसे नहीं दिये और वह चुनाव नहीं लड़ सका. उसे उत्तर भी आज भेज दिया है, देखें क्या जवाब देता है.

सोच रहा हूँ कि किन्हीं विदेशी पत्रिकाओं के लिये अगर कुछ लिखूँ तो काफ़ी पैसा मिले. सुरेन्द्र से भी इस पर बात की है. वह खुद कुछ लिखने की सोच रहा है. कल अगर USIS की लायब्रेरी से जा कर कुछ पते ले आऊँ तो परसों एक लेख लिख डालूँ और एक आध को भेज दूँ. अगर एक भी छप जाये तो काफ़ी पैसे मिल जायें. Books Abroad के लिए Asian Writers Conference पर भी कुछ लिख कर भेज सकता हूँ. या Harper's Magazine भी कुछ काम की हो.

(ओम की डायरी से)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें