tag:blogger.com,1999:blog-9078433206560301511.post3958850969704970736..comments2023-07-04T14:47:49.800+02:00Comments on ओम और कमला: 1957 हैदराबाद, ओम की डायरी सेSunil Deepakhttp://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-9078433206560301511.post-51949787424029151722013-01-09T05:35:50.458+01:002013-01-09T05:35:50.458+01:00धन्यवाद अनुराग.
डायरी को ब्लाग पर देना चाहिये या ...धन्यवाद अनुराग.<br /><br />डायरी को ब्लाग पर देना चाहिये या नहीं, यह सोचते हुए मन में कई दुविधाएँ थीं. कई दुविधाएँ अभी तक मन में सुलझा नहीं पाया हूँ. डायरी के बहुत से हिस्से ब्लाग पर बाँटने कठिन होंगे क्योंकि उनमें बहुत व्यक्तिगत बातें हैं.<br /><br />छोटे छोटे खर्च के लिए पैसे न होने का रोना तो पूरी डायरी में है, पर वह कोई रहस्य नहीं था, सबको मालूम ही था. इसी बात से समझ में आया कि घर परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी हो तो आदर्शों के प्रति निष्ठवान रहना कितना कठिन है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9078433206560301511.post-44735276199083074962013-01-09T01:33:32.557+01:002013-01-09T01:33:32.557+01:00क्षमता के बारे मे तो आपसे असहमत होने का सवाल ही नह...क्षमता के बारे मे तो आपसे असहमत होने का सवाल ही नहीं उठता। मैं तो सदा से कहता हूँ कि <a href="http://pittpat.blogspot.com/2011/05/2.html" rel="nofollow">सुनहरा दिल होना काफी नहीं है, सक्षम पाँव और कुशल हाथ भी चाहिये।</a>। लेकिन बात इतने तक ही नहीं रुकती, राजनीतिक नेता हो या धार्मिक, हम भारतीयों की कसौटी इतनी हल्की है कि अधिकांश नाकाबिल लोग उसमें पास हो जाते हैं। <br /><br />पिछली टिप्पणी में लिखने से बच रहा था लेकिन अब कह ही देता हूँ कि इस पोस्ट में पैसों के हिसाब और भविष्य की बात पढ़कर मन भीग सा गया। लगता है कि ईमानदार लोगों के संघर्षों का फल शायद अच्छी संतति के रूप में (या संतति को) मिलता है। [आप चाहें तो टिप्पणी के इस अंश को इगनोर कर सकते हैं।]Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9078433206560301511.post-50416308765201081562013-01-08T06:00:22.115+01:002013-01-08T06:00:22.115+01:001957 में डा. लोहिया की समाजवादी पार्टी की अपनी राज...1957 में डा. लोहिया की समाजवादी पार्टी की अपनी राजनीति पहचान बनाने की चेष्ठा में ही शायद बीस साल बाद जेपी की सम्पुर्ण क्राँती के बीज छिपे थे? राजनीति और गरीब जन की दूरी की बात समझता हूँ पर शायद उनके हित में काम करने वाला अच्छा नेता बनने के लिए लोग कैसे रहते हैं इसका व्यक्तिगत अनुभव होने के के साथ साथ, आज के समाज में नेताओं में दूसरे बहुत से गुण चाहिये! मुझे राजनीति का कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं लेकिन इसके बारे में पढ़ कर लगता है कि राजनीति में सही विचार के साथ उनको लागू कर पाने की क्षमता भी चाहिये जो आदर्शवादियों में अक्सर कम होती है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9078433206560301511.post-57927274338413903032013-01-08T04:15:09.435+01:002013-01-08T04:15:09.435+01:00सम्पूर्ण क्रान्ति की आशा, वह भी उन लोगों से, जिन्ह...सम्पूर्ण क्रान्ति की आशा, वह भी उन लोगों से, जिन्हें यह जानने की भी ज़रूरत नहीं कि देश का भूखा गरीब शीतलहर के दिन कैसे काटता है या बाढ़ में बांधों का पानी छोड़ने से कितने जान-माल की हानि हर साल होती है। क्या बदला तब से अब तक?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com